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सोमवार, 12 सितंबर 2016

बच्चों पर प्रयोग .....

बच्चों पर प्रयोग...
                    मध्य प्रदेश के सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ।बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर साल दर साल नित नए प्रयोग देखने को मिल रहे हैं।अब वर्तमान में ये है कि प्रारामभिक शिक्षा में क़िसी को फैल नही किया जायगा।बात भी ठीक लगती है,फैल होने पर बच्चे अनुचित क़दम उठा लेते हैं।सरकार भी करे तो क्या करे! बच्चों को तमाम सुविधाएं देने के पश्चात भी परिणाम वही का वही है।मध्यान्ह भोजन योजना स्कूलों में इसलिए प्राम्भ की के बच्चों का विधयालय में ठहराव हो,लेकिन ये प्रयोग भी सफल नही रहा है।बच्चों की शासकीय स्कूलों में उपस्थिति नाम मात्र को ही रहती है।शिक्षक भी करे तो क्या करे।उस पर भी काम का भोझ कुछ ज़्यादा ही है।बहुत पहले कभी मैंने लिखा था कि शासकीय स्कूलों में अंग्रेज़ी कक्षा एक से ही पढाई जाना चाहिए।ऐसा हुआ भी।आप जानते ही हैं कि,सरकारी स्कूलों में पहले कक्षा-6 से अंग्रेज़ी पढ़ाई जाती थी।खैर बच्चों की पढाई पर प्रयोग की बात हो रही थी।तो ये भी बताता चलूँ कि अब तो आर टी ई क़ानून भी बन गया है।अब बेस लाईन सर्वे हो रहा है आंतरिक और बाहरी मूल्यांकन भी हो रहा है।शायद ये सर्वे बच्चों पर किसी नए प्रयोग की योजना के संकेत हैं।ये बात समझ नही आती आज तक प्राम्भिक शिक्षा पर कोई सफल प्रयोग क्यों नही हो पाया है।पूर्व में दक्षता के टेस्ट होते थे,उसके भी आंकड़े एकत्रित किये जाते थे।अभी हाल ही मे प्रतिभा पर्व के माध्यम से बच्चों की शेक्षडिक गुणवत्ता का प्रयोग हुआ था।मुझे लगता है।अब तो प्रयोग समाप्त कर के परम्परागत पद्धित से ही पड़ाया जाना उचित होगा।बीच बीच मे शिक्षा के निजीकरण की बात भी उठी थी।ये भी एक प्रयोग कर के देखा जा सकता है।शायद ये प्रयोग सफल हो जाये।कुछ लोग मानते हैं कि,प्राम्भिक शिक्षा का महत्व अधिक है।इसलिये इस विभाग के शिक्षकों का वेतन सबसे अधिक कर के भी एक प्रयोग कर ही लेना चाहिए।हालांकि कुछ देशों में ऐसा है भी और इसके परिणाम भी अच्छे हैं।