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शनिवार, 10 सितंबर 2016

निगाहों ने निगाहों से....

निगाहों ने निगाहों से.....
                         निगाहों का भी बड़ा अजब और गज़ब मामला है।निगाहों पर अनेक कवि और शायरों ने बहुत ही असरदार पंक्तियाँ कही हैं।निगाहों से सम्बंधित अनेक फिल्मकारों ने फिल्में भी बनाई हैं।निगाह से उठना और गिर जाने का आज भी बड़ा महत्व है।मोबाइल क्रान्ति के इस आधुनिक युग में आज भी निगाहों की निगाहों से बात हो जाती है।सब का अपना महत्व और ज़रूरत है।सब अपनी जगह दुरुस्त हो सकते हैं।ये ब्लॉग बस स्टेण्ड पर बेठे हुए उस सत्तर साल की बुड़ी महिला को देख कर लिख रहा हूँ जो हर यात्री की निगाहों से निगाह मिला कर कुछ फ़रयाद करती हुई नज़र आरही है।कुछ लोग उसको और उसकी उम्र देख कर दया कर के एक दो रुपये उसके कटोरे में डाल देते हैं।कुछ को तरस भी नही आता।और खरी खोटी सुना कर चल देते हैं।खेर मैंने और मेरे मित्र ने भी उसे कुछ पैसे दिए और वहां से आगये।मन में उसकी निगाहें थी और ये विचार आज भी वही का वही के इस उम्र में भी इनसान को दो जून की रोटी के लिए कितनी मशक़्क़त करना पड़ रही है।बात निगाहों की हो रही थी तो यहाँ ये भी लिखता चलूँ कि शायद किसी की निगाहे करम उन तरसती निगाहों पर भी हो जाया करें तो ......निगाहें निगाहों से सवाल करना छोड़ दें।आपकी निगाहें क्या कहती हैं लिखियेगा।