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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

तनाव.....भी एक मुद्दा है क्या ?


                 आज की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में व्यक्ति के पास अपने और अपने परिवार तक के लिए समय नही है।आज कल के समाजिक रिशते भी व्यक्ति नही निभा पाता है।लगभग हर व्यक्ति ने तनाव में रहने की आदत बना ली है।किसी को काम की अधिकता होने से तनाव है,और किसी को काम नही होने से तनाव है।हम हमारे आस पास नज़रें दौड़ाकर देख़ें तो,हमें अनेक लोग ऐसे मिल जायेगें जो तनाव में रहने के आदि हो चुके हैं।फिर भी ऐसे लोगों की कमी नही है जो दूसरों को खुशी देकर खुश होते हैं।ऐसे लोग भी बहुत हैं जो अपने दुख से ज़्यादा दूसरे के दुखों से दुखी हैं।कुछ लोग कहते हैं ये आधुनिकता, ये अविष्कार,ये सब सहूलियतें बेकार है।पूर्व में लोगों को एक दूसरे से बात चीत करने का समय होता था।अपने सुख दुख अपनों से बांट कर व्यक्ति खुशी-खुशी अपना जीवन गुज़ार देता था।उस माहोल में व्यक्ति कभी तनाव में नही रहता था।तनाव की खास वजह व्यक्ति की आशाएं आवश्यकता से अधिक होना भी है।जब व्यक्ति सन्तुष्ट होकर जीना सीख लेता है तो,उसे कभी निराशा और तनाव का सामना नही करना पड़ता है।कुछ जानकार मानते हैं कि,व्यक्ति कभी कभी किसी विशेष पद पर बने रहने से भी तनाव में रहता है,उसको डर रहता है कि,उसका पद चला न जाये।और ये ही तनाव का कारण बन जाता है।खैर बात जो भी हो हमें अपना जीवन सन्तुष्ट होकर व्यतीत करना चाहिए।आवश्यकता पड़ने पर अन्य व्यक्तियों का सहयोग भी करना चाहिए।हमें हर वोह कार्य करना चाहिए,जिससे हमारी आत्मा प्रसन्न रहे।तनाव को भगाने का सबसे बेहतर उपाय है छोटी-छोटी खुशियां एन्जॉय करना चाहिए।दूसरे की मदद करके भी हमें सुकून और तनाव मुक्त जीवन जीने का होसला मिलता है।आप क्या सोचते हैं कि क्या इस दुनिया में तनाव से पीड़ित कोई नही है या तनाव भी एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बात करने की गुंजाइश है......जो भी हो आप अपने विचार और अनुभव तनाव के सम्बन्ध में ज़रूर साझा कीजियेगा।

शनिवार, 24 सितंबर 2016

नशे ने बहुत तरक़्क़ी है....


                    आज की युवा पीढ़ी नशे की लत में मस्त है।इस आधुनिक युग में नशे ने भी बहुत तरक़्क़ी की है।आज का युवा परम्परागत नशे से तो बहुत दूर है।आप जानते ही है।पहले बीड़ी,सिगरेट और शराब आदि चीजें नशे का प्रमुख स्त्रोत हुआ करती थी।पर जैसे जैसे दुनिया ने तरक़्क़ी की है।नशे ने भी अपना रूप रंग बदला है।


                 आज के इस आधुनिक युग में युवा ड्रग्स,कोकीन,अफ़ीम आदि नशीली चीज़ों का सेवन करने में लगे हुए हैं।सामान्य तोर पर दवाई के तोर पर प्रयोग की जाने वाली कोरेक्स को आज का युवा नशे के रूप में उपयोग कर रहा है।यह वह युवा है जो पड़ा लिखा है।नशे के अच्छे बुरे प्रभाव को आप और हम से बेहतर समझता है।इस प्रकार के जगरुक नशेलची युवाओं को समझाना बहुत मुश्किल होता है।

            नशा मुक्त समाज के लिए ज़रूरी है कि शासन और समाज मिलकर नशीले पदार्थों की तस्करी करने वालों के खिलाफ ज़रूरी उपाय खोजें।क्योंकि आज का युवा ही कल का भविष्य है।और हमारा ये नोजवान नशे के कारण खोखला और कमज़ोर हो रहा है।युवा नशे की लत के कारण धन दौलत के साथ ही अपना जीवन भी बर्बाद कर रहे हैं।सुखी सम्पन्न परीवार इन नशेलची युवाओं के कारण तबाह और बर्बाद हो रहे हैं।आप जानते ही हैं कि इस नशे की लत के कारण  युवा अपना सब कुछ खो देते हैं।फिर भी इनके पास नशा करने के लिए पैसे नही होते तो यह,चोरी,डकैती जैसे अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।
समाज में एक धारणा बनी है कि यदि नशीली वस्तुओं पर सरकार प्रतिबन्ध लगा दे तो भी कुछ हद तक नशे पर कण्ट्रोल किया जा सकता है।बिहार जैसे कुछ उदाहरण हमारे सामने है जहां शराब पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है अब ये अलग विषय है कि,शराब पर प्रतिबन्ध लगाने से बिहार में शराब पीने वालों की संख्या बड़ी या घटी ? सभ्य समाज में नशे के लिए कोई स्थान नही है।लोगों का मानना है कि नशा अनेक बुराइयों की जड़ है।आधुनिक नशा तो और भी ज़्यादा खतरनाक है।आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जो परिवार नशे की लत से दूर हैं वह सुखी सम्पन्न हैं।चिन्ता का विषय यह है कि गरीब तबक़ा भी इस नशे का आदि हो चुका है।कई घरों में परिवार का मुखिया जब शाम को नशा कर के घर आता है और दिन भर की मज़दूरी उसने अपने नशे में खर्च कर दी होती है।आप सोचिये विचार कीजिए ऐसे परिवारों के बच्चे क्या भूखे नही सोते होंगे ?
नशा भारतीय समाज में हमेशा से ही कमाऊ कूत विषय रहा है।इस विषय पर बनी फिल्में और गानों ने खूब कमाई की है।नशा शब्द ही हमेशा से बिकाऊ रहा है।पर हमें अपने समाज को जागरूक करने की ज़रूरत है।हमें हमारे नोनिहालों को नशे से दूर रखने के हर सम्भव प्रयास करना चाहिये।

बुधवार, 21 सितंबर 2016

रोटी को तरसे.....



                    रोटी के अपने जलवे और कहानी है।पुरानी कहावत है कि,व्यक्ति की मुलभूत ज़रूरत ही "रोटी कपड़ा और मकान" है।आज हम उस रोटी की बात कर रहे हैं जिस्से शायद हम सभी प्रतिदिन रूबरु होते हैं।यहां शायद शब्द इसलिए लिखा है कि,हमारे इतने बड़े देश में लोगो के खान पान और रहन सहन में अंतर है।अनेकता में एकता की हमारी जेसी मिसाल पूरी दुनिया में न तो कभी देखने को मिलती है और न ही सुनने को।इतनी विभीधताओं के बाद भी हमारी एकता और भाईचारा हमारी पहचान है।तो ज़ाहिर सी बात है बहुत सी जगह रोटी का चलन ही न हो।बात रोटी की कर रहे थे तो यहां ये भी बताता चलूँ ,ये जो रोटी है कोई मामूली चीज़ नही है।बहुत सों को कई कई दिन मयस्सर नही होती और बहुत से ऐसे भी हैं जो एक रोटी के लिए न जाने कितने जगह हाथ जोड़ते हैं।और बहुत से ऐसे हैं जिन्हें ईश्वर की कृपा से प्रतिदिन समय पर रोटी के दर्शन हो जाते हैं।वास्तव में देखा जाये तो व्यक्ति इस रोज़ी रोटी की जुगत में ही लगा रहता है।ये रोटी फिल्मी जगत में भी दखल रखती है कई फिल्मों ने इस रोटी के महत्व को अपनी फिल्म में खूब भुनाया है।कई फिल्मी हिट गीत भी रोटी का ज़िक्र करते हुए दिखाई देते हैं

                 बात अगर आम आदमी की की जाये तो रोटी उसके लिए तो एक जद्दोजहद है।उसका प्रयास ये ही रहता है कि वह अपने परिवार को कम से कम रोटी तो समय पर मुहैया करा ही दे।आज शायद आम आदमी रोटी के लिए उतना परेशान न रहता हो जितना पहले था।अब तो सरकार भी आम आदमी को समय से रोटी उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है।बहुत कम मूल्य पर राशन की दुकानों से गेहूं उपलब्ध कराया जा रहा है।और अति गरीब लोगों को तो मुफ़्त में ही दिया जाता है।खैर एक ज़माना था जब रोटी परिवार के लिए परिवार का मुखिया मुहैय्या नही करा पाता था तो उसकी स्तिथि का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं।रोटी का मुद्दा भावनात्मक है,और हमारी प्रमुख ज़रूरत है।रोटी के राग और राज़ से सभी परिचित हैं।ज़्यादा इस पर चर्चा करने की भी ज़रूरत नही है।आप उस आनन्द का महत्व समझिये जब किसी भूखे को भोजन कराकर कितनी शांति और सुकून मिलता है।यदि हर व्यक्ति किसी भूखे को रोटी खिला कर खुद रोटी का सेवन करें तो,शायद ही इस देश में कोई रोटी को तरसे।

रविवार, 18 सितंबर 2016

ज़िन्दगी का सफर ...


                       शुभ रात्रि और शब्बा खेर जेसे शब्द हमने अनेक बार सुने हैं।यदा कदा आवश्यकता पड़ने पर हम भी इनका प्रयोग करते है।आज कल Good Night शब्द का ज़्यादा प्रचलन है।व्यक्ति के जीवन में दिन रात का खेल चलता रहता है।पहले कहा जाता था कि,दिन का समय काम काज के लिए है।और रात का समय आराम करने के लिए होता है।बात भी सही है आदमी दिन भर अपना काम करके शाम को घर आता है और थका हुआ शरीर आराम की तलाश करता है।पर आज के इस आधुनिक दौर ने इन पुरानी बातों में भी परिवर्तन ला दिया है।अब इस तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में व्यक्ति ओवर टाइम भी काम करता है।कुछ लोग का काम ही ऐसा होता है कि,उन्हें ,नाइट शिफ्ट"में काम करना होता है।और वह सम्भवता दिन में आराम करते होंगे।बात जो भी हो जब व्यक्ति सोने जाता है तो उसे नही पता होता कि वह कल का दिन भी देख पायेगा या नही।क्यों के किस व्यक्ति को कितना जीना है, ये उसे नही पता होता है।कब किस की साँसे पूरी हो जाएं ये कोई भी नही जानता है।इस भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी में व्यक्ति दौड़ लगाता रहता है।पता ही नही चलता कि,ज़िन्दगी का ये सफर कब समाप्त होने वाला है।आप सभी ने किसी अपने को इस ज़िन्दगी के सफर को पूर्ण करके जाते हुए कई बार देखा होगा।ये भी हम सभी जानते हैं कि,जब कोई अपना हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाता है तो कितनी तकलीफ होती है।ये सोचने भर से हम मायूस हो जाते हैं कि,आज अपना वह व्यक्ति हमारे बीच नही है।बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने अपने माता पिता को अपने से दूर जाता देखा होगा,वही लोग समझते भी हैं कि किसी अपने के यूँ ही चले जाने से कितना दुख होता है।पर ज़िन्दगी की सच्चाई भी ये ही है।जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसको ये दुनिया छोड़ कर भी एक दिन जाना है।किस को कब जाना है ये कोई नही जानता।मैं यहां कोई नई बात नही लिख रहा हूँ सब इन बातों से परिचित हैं पर जब चित्र में सासों का ज़िक्र देखा तो मन हुआ कि कुछ लिखा जाये।आप इससे बेहतर इस सम्बन्ध में विचार रखते होंगे।मुझे लगता है कि आप उचित समझें तो अपने विचार शैयर अवश्य करें

शनिवार, 17 सितंबर 2016

एक अच्छा रिश्ता ज़िन्दगी को ......



               रिश्तों का इंसानी ज़िन्दगी में बड़ा महत्व है कुछ रिश्ते हम बनाते हैं और कुछ रिश्ते हमें विरासत में मिलते हैं।कुछ रिश्ते खून के रिश्ते होते हैं।खून के रिश्ते हमारी ज़िंदगी में बहुत महत्व पूर्ण होते हैं।किन्तु कुछ लोगों की सोच इसके विपरीत होती है।उनका मानना है कि खून के रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हैं हम नही बनाते बल्कि वोह हमें खुद ही मिलते हैं।किन्तु जो रिश्ते हम बनाते हैं।उनकी अहमियत हमारी ज़िन्दगी में ज़्यादा होना चाहिए,क्यों कि ऐसे रिश्ते हम अपनी समझ बूझ से बनाते हैं।इस तरह के रिश्ते  मित्रों से बनते हैं।मित्रों का भी हमारी ज़िन्दगी में उतना ही महत्व होना चाहिए।जितना कि,अन्य सदस्यों का।
रिश्ते जो भी हों जेसे भी हों।निभाना ईमानदारी से चाहिए।जिस प्रकार आपने सुना होगा एक आइडिया ज़िन्दगी को बदल सकता है।उसी प्रकार एक अच्छा रिश्ता भी ज़िन्दगी खुशगवार बना सकता है।बात सिर्फ रिश्तों की अहमियत को समझने की है।और निभाने की है

गुज़रा हुआ वक़्त लौट कर नही आता


                       व्यक्ति की ज़िन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दौर बचपन होता है।हर कोई चाहता है कि मेरा बचपन फिर लोट आये लेकिन ऐसा होता नही है।वास्तव में ज़िन्दगी का ये पड़ाव जिसे हम बचपन कहते हैं।हर किसी को बैचेन किये रहता है।सभी की ज़ुबान पर अपने बचपन से जुड़ी कुछ खट्टी मीठी यादें होती हैं।जो वह अपनों से शेयर करना चाहता है।ये ही वजह है कि सभी को बच्चे पसन्द होते हैं।बच्चे  भी कितने मासूम और भोले होते हैं।कठोर से कठोर व्यक्ति भी बच्चों के सामने नरम हो जाता है।जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपने बच्चों को अपने बचपन के किस्से कहानियाँ सुनाते हैं।वास्तव में देखा जाये तो बचपन की बातें और यादें हर किसी को याद रहती है।और व्यक्ति सोचता है काश एक बार फिर से बचपन लौट आये।पर ऐसा होता नही है।जो बीत गया सो बीत गया ।बात बचपन की हो रही है तो अंत में ये भी बताता चलूँ कि,जो पल  हमें ज़िन्दगी में मिले हैं उन्हें खुशी से जी लेना चाहिए क्योंकि वक़्त कभी लोट कर नही आता है।जेसे बचपन लोट कर नही आता वेसे ही ज़िन्दगी का हर पड़ाव महत्वपूर्ण है।जो गुज़र जायेगा वोह कभी लोटेगा नही।किसी बड़े लेखक ने लिखा था "गुज़रा हुआ वक़्त लोट कर नही आता" जिसने भी लिखा था सही लिखा था।आप क्या सोचते हैं? लिखियेगा

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

आंसुओं की भी अजब कहानी है...

 
                      आसुओं की भी अजब कहानी है।और अपनी दुनिया और अपनी भाषा है।कभी कभी किस्मत वाले लोगों को खुशी के आंसुओं के भी दीदार हो जाते हैं।आंसुओं की दुनिया में ये अपवाद स्वरूप होते हैं।वास्तव में आंसू के बारे में ये कहा जाता है कि,ज़्यादातर आंसू किसी अपने की दी हुई तकलीफ की वजह से ही निकलते हैं।ऊपर चित्र में जिस आंसू का ज़िक्र है वह वास्तव में बहुत तबाही मचाता है।ये किसी अपने का भी दिया हुआ आंसू भी हो सकता है।
कुछ लोगों का मानना है कि,आंसू मुस्कुराहट से ज़्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि मुस्कराहट सभी के लिए होती है।और हमारी आँख में आंसू किसी खास के लिए ही होता है।
                            खेर आंसू कभी बे वजह नही आते।हर किसी की ज़िन्दगी में"कभी खुशी कभी गम" जैसी स्तिथी रहती है।हर कोई आंसुओं से वाकिफ है।सभी उसका महत्व समझते हैं।लेकिन आंसू जब भी आते हैं इंसान को बहुत तकलीफ देते हैं।आंसुओं के बारे में शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं में बहुत कुछ लिखा है।कई फिल्मी गाने लफ्ज़ आंसू के सही प्रयोग से हिट हो चुके हैं।वास्तव में आंसू देख कर हर कोई भावुक हो जाता है।आज भी अच्छे व्यक्ति की पहचान है कि,वह किसी की आंखों में आंसू लाने का कारण नही बनता।बल्कि किसी के भी आंसू पोछने की कोशिश करता रहता है।समाज को भी ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है।आपको अगर ऐसे लोग मिले हों तो लिखियेगा ज़रूर

जीवन जीने की कला ....


                          ज़िन्दगी में हर किसी को लगभग एक जैसी ही उम्र जीने को मिलती है शारीरिक अवस्था भी समान ही होती है।फिर भी कुछ लोग ज़्यादा जीते हैं और कुछ लोग कहते हैं की, ये सब नसीब की बातें हैं।कुछ लोग समझदार होते हैं अपने जीवन को एक नियम में ढाल कर जीवन जीते हैं।उनकी जीवन शैली बड़ी अनुशासित होती है।जानकारों का मानना है कि,ऐसे लोग ज़्यादा जीते हैं।फिर भी कुछ लोग चित्र में अंकित शब्दों के अनुसार जीवन को जीने की बात करते हैं।एसे लोगों का मानना है कि,चित्र अनुसार जीने का अपना ही मज़ा है।खैर बात जो भी हो जीवन में ममुस्कुराना भी एक कला है।हर कोई इस कला का ज्ञाता नही होता।जो मुस्कुराना जानते हैं,उनहैं जीवन जीने की कला आती है।

suvachhta: ज़िन्दगी का ये दौर ....

ज़िन्दगी का ये दौर ....


                         ज़िन्दगी का ये दौर भी एक सच्चाई है।जिस को नकारा नही जा सकता है।बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो इस उम्र में आ ही नही पाते हैं।कुछ लोगों का उम्र के इस पड़ाव पर आते आते अपने जीवन साथी का साथ छूट जाता है।कुछ लोग खुशनसीब होते है।वह उम्र के इस दौर में भी अपने जीवन साथी के साथ प्रेम से रहते हैं।पर दिक़्क़त उन लोगों की हो जाती है जो उम्र के इस तीसरे चोथे दोर में,रोज़मर्रा की दिकक्तों का भी सामना अकेले ही करते हैं।शासन इन्हें सम्मान से "सीनियर सिटीजन"कहता है।पर इन सीनियर सिटीजन की ज़िन्दगी किस हाल में गुज़र रही है,ये देखने वाला कोई भी नज़र नही आता है।कभी कभी कुछ लोग इस उम्र के आपको सड़कों पर भीख मांगते भी दिखाई दिए होंगे।चिंतन का विषय है।आप भी सोचियेगा ज़रूर।क्या वास्तव में ये उम्र भीख मांग कर गुज़ारा करने की होती है।या इस उम्र में इनको कुछ थोड़ी बहुत सहूलियत भी मिलना चाहिए.......?

सोमवार, 12 सितंबर 2016

टाईम मैनेजमेंट

टाईम मैनेजमेंट .....
                     व्यक्ति के जीवन में टाईम मैनेजमेंट का बड़ा महत्व है।अनेक विचारकों ने इस विषय पर विचार व्यक्त किये हैं।हमने अनेक लेख पड़े हैं जिसमें व्यक्तियों ने अपने जीवन में समय का प्रबंधन कर के अपने क्षेत्र में ऊचाईयां प्राप्त की हैं।कई व्यक्तियों ने तो केवल सुबह नाश्ता बनने और नाश्ता करने के बीच के समय को उपयोग कर के बड़े बड़े अविष्कार तक कर डाले।वास्तव में जीवन में हर किसी चीज़ का उचित प्रबन्धन होना आवाश्यक है।प्रति दिन में सभी लोगों के लिए एक जैसा समय होता है।कुछ लोगों के लिए वही समय कम पड़ता है।कुछ लोग ये कहते हुए दिखाई देते हैं कि,"टाईम नही है" और कुछ लोग उसी समय को टाईम मैनेजमेंट से पर्याप्त बना लेते हैं।देखा जाये तो टाईम मैनेजमेंट एक कला है।जो इसके माहिर होते हैं,वह इसके उपयोग से बहुत जल्द सफलता प्राप्त कर लेते हैं।कुछ लोगों का हमेशा यही कहना होता है कि,जीवन में सफल होने के लिए समय ही नही मिला।

शनिवार, 10 सितंबर 2016

निगाहों ने निगाहों से....

निगाहों ने निगाहों से.....
                         निगाहों का भी बड़ा अजब और गज़ब मामला है।निगाहों पर अनेक कवि और शायरों ने बहुत ही असरदार पंक्तियाँ कही हैं।निगाहों से सम्बंधित अनेक फिल्मकारों ने फिल्में भी बनाई हैं।निगाह से उठना और गिर जाने का आज भी बड़ा महत्व है।मोबाइल क्रान्ति के इस आधुनिक युग में आज भी निगाहों की निगाहों से बात हो जाती है।सब का अपना महत्व और ज़रूरत है।सब अपनी जगह दुरुस्त हो सकते हैं।ये ब्लॉग बस स्टेण्ड पर बेठे हुए उस सत्तर साल की बुड़ी महिला को देख कर लिख रहा हूँ जो हर यात्री की निगाहों से निगाह मिला कर कुछ फ़रयाद करती हुई नज़र आरही है।कुछ लोग उसको और उसकी उम्र देख कर दया कर के एक दो रुपये उसके कटोरे में डाल देते हैं।कुछ को तरस भी नही आता।और खरी खोटी सुना कर चल देते हैं।खेर मैंने और मेरे मित्र ने भी उसे कुछ पैसे दिए और वहां से आगये।मन में उसकी निगाहें थी और ये विचार आज भी वही का वही के इस उम्र में भी इनसान को दो जून की रोटी के लिए कितनी मशक़्क़त करना पड़ रही है।बात निगाहों की हो रही थी तो यहाँ ये भी लिखता चलूँ कि शायद किसी की निगाहे करम उन तरसती निगाहों पर भी हो जाया करें तो ......निगाहें निगाहों से सवाल करना छोड़ दें।आपकी निगाहें क्या कहती हैं लिखियेगा।