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सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

अध्यापक शहडोल रैली

 खबर ये है कि,अध्यापकों ने अपनी प्रस्तावित रैली शहडोल में आयोजित की है,ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि,गड़ना पत्रक जारी होने के बाद अध्यापकों की शहडोल रैली निरस्त कर दी जायेगी,किन्तु खबरों के मुताबिक़ ऐसा नही हुआ,अध्यापकों ने न सिर्फ रैली की,बल्कि ताज़ा जारी गड़ना पत्रक की विसंगतियों को भी दूर किये जाने की भी मांग की,साथ ही अध्यापक नेताओं द्वारा अध्यापकों की मूल मांग,शिक्षा विभाग में संविलियन शीघ्र किये जाने की मांग भी की.हालांकि गड़ना पत्रक जारी होने से अध्यापकों के तेवर उतने सख्त नही थे,जितने की उम्मीद की जा रही थी,अध्यापकों की इस रैली से राज्य सरकार अध्यापकों से नाराज़ दिखाई दे रही है,सरकार ने सोचा था कि,गड़ना पत्रक जारी होने से,अध्यापक अपना आंदोलन समाप्त कर देंगे.किन्तु अध्यापकों की शहडोल रैली से राज्य सरकार खफा होती दिख रही है.इस बीच आम अध्यापक का कहना ये है कि,अध्यापक नेताओं को वर्तमान जारी गड़ना पत्रक अनुसार अक्टूबर माह के वेतन का भुगतान करा लेना चाहिए,और विसंगतियों को इसके बाद दूर कराने के प्रयास करने चाहिए,मध्य प्रदेश में अध्यापक संवर्ग बहुत बड़ी तादाद में हैं,जिसके कारण अलग अलग राय इस सम्बन्ध में निकल कर सामने आरही है.अभी जो गड़ना पत्रक जारी हुआ है वह शहरी अध्यापकों के लिए है,ग्रामीण अध्यापकों को अभी आदेश का इंतेज़ार है.देखते हैं क्या अध्यापकों को अक्टूबर का वेतन,वर्तमान जारी गड़ना पत्रक अनुसार मिल पाता है अथवा नही....

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

तेवर ज़रा सख़्त हो गए हैं.....

                      अध्यापक उस गढ़ना पत्रक का इंतेज़ार कर रहे हैं जिसका कहीं अता पता नही है.अध्यापक नेताओं द्वारा भी सोशल साईट पर इस प्रकार की खबरें प्रचारित एवं प्रसारित की जा रही हैं कि,उस तिथि एवं समय की वेतन पत्रक जारी हो जायेगा,और जब तिथि और समय निकल जाता है तो,अध्यापक निराश हो जाते हैं.कहने का प्रयास ये है कि,जब वास्तविक रूप से कोई काम हो जाये तब ही उसका प्रचार प्रसार किया जाये.आज कल तो समाचार पत्रों में भी अध्यापकों की मांगों से सम्बंधित खबरें पढ़ने को नही मिल रही हैं.इस सम्बन्ध में सरकार का पक्ष भी सामने नही आ रहा है.सरकार का पक्ष भी सामने आना चाहिए.प्रदेश के मुखिया को दीपावली के पर्व को को ध्यान में रखते हुए,अध्यापकों को छटवें वेतनमान की सौगात दे ही देना चाहिए.जिससे इस दीपावली पर अध्यापकों के घर भी रोशन हो सकें.कुछ अध्यापक तो twitter पर बहुत आक्रामक दिखाई दे रहे हैं.छठवां वेतन नही मिलने से उनके विचार और तेवर ज़रा सख्त हो गए हैं.अब सरकार को अध्यापकों के हितों की रक्षा करते हुए शीघ्र अध्यापक हित में निर्णय लेना चाहिए।

सोमवार, 26 सितंबर 2016

अध्यापकों के क़दमों से रोशन ज़िले की सड़कें...


                विगत दिवस ज़िला स्तर पर समस्त मध्य प्रदेश में अध्यापकों ने अपनी मांगो को मनवाने के लिए सफल आंदोलन किया।इस आंदोलन में समस्त ज़िलों में अध्यापकों ने बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया।जिसका परिणाम है कि आज अखबारों के पेज आंदोलन से सम्बंधित खबरों से पटे पड़े हैं।सोशल साईट पर अनेकों तस्वीरें बिखरीं पड़ी हैं। facebook,whatsapp,twitter,google,पर अध्यापक ही अध्यापक नज़र आ रहे हैं 



                      अध्यापकों का उत्साह देखने लायक था।सम्पूर्ण मध्य प्रदेश की ज़िले की सड़कें अध्यापकों के क़दमों से रोशन थीं।महिला अध्यापकों ने भी इस आंदोलन में बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया।कुछ जगह तो बारिश का मौसम भी अध्यापकों का उत्साह कम नही कर पाया।अध्यापक इस सफल आंदोलन से प्रसन्न हैं।किन्तु चिन्ता का विषय ये है कि सरकार की तरफ से अभी  तक अध्यापकों को कोई सकारात्मक संकेत नही मिले हैं।हो सकता है सरकार आंदोलन से खुश न हो।सरकार बात चीत से ही अध्यापकों के मुद्दे हल करना चाहती हो ? बात जो भी हो अध्यापकों का बार बार सड़कों पर उतरना उचित नही है।सरकार को चाहिए कि अध्यापकों की मांगो पर विचार करे।

रविवार, 25 सितंबर 2016

ज़िले की सड़कों पर अध्यापक....


              अध्यापक समान कार्य और समान वेतन की अपनी प्रमुख मांग को शासन से मनवाने के लिए ज़िला स्तर पर आंदोलन कर रहे हैं।चित्र में सिरोंज के अनेक अध्यापक दिखाई दे रहे हैं।आज सुबह तड़के सिरोंज के अध्यापक ज़िले में आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए अपने निजी वाहन से रवाना हुए।



          गौरतलब बात यह है कि अध्यापक ज़िले की इस रैली की तैयारी बहुत दिन से कर रहे थे।जिसका परिणाम यह हुआ कि आज ज़िला स्तर की रैली में बड़ी संख्या में अध्यापक सम्मिलित हुए।आप जानते ही हैं कि मध्य प्रदेश में अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन और समान कार्य और समान वेतन की मांग को ले कर आंदोलन कर रहे हैं किन्तु उनकी मांगों पर विचार नही किये जाने से अध्यापक फिर से आंदोलन की राह पकड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।उसी क्रम में आज मध्य प्रदेश के ज़िलों में,ज़िला स्तर पर अध्यापक आंदोलन कर के अपने आंदोलन की शुरुआत कर रहे हैं।अब देखना यह है कि ज़िला स्तर के इस आंदोलन का अध्यापकों की मांगों पर कोई प्रभाव पड़ता है अथवा नही ? अध्यापकों के तेवर तो यह बता रहे हैं कि यदि उनकी मांगों पर विचार नही किया गया तो,भाविष्य में उनका ये आंदोलन और भी बड़े स्तर पर हो सकता है।आज के आंदोलन में अध्यापकों की प्रशंसा की जानी चाहिए।उन्होंने आंदोलन के लिए रविवार का दिन चुना जिससे बच्चों की पढाई प्रभावित न हों....अब शासन को भी अध्यापकों की मांगों पर विचार कर उपयुक्त निर्णय लेना चाहिए।

शनिवार, 24 सितंबर 2016

ज़िला मुख्यालय पर करेंगे विरोध.....


                      ज़िला मुख्यालय पर अध्यापक अपनी मांगों को ले कर कल रैली निकालेंगे इसकी तैयारी का आज अंतिम दिन था।उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में अध्यापक लम्बे समय से शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग कर रहे हैं।आप जानते ही हैं कि मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों में कार्यरत अध्यापक काम तो शिक्षा विभाग में करते हैं किन्तु फिर भी शिक्षा विभाग के कर्मचारी नही कहलाते।लंबे समय से अध्यापक अपनी मांगो को ले कर आंदोलन करते आ रहे हैं।किन्तु शासन ने अभी तक अध्यापकों की मांगों पर गोर नही किया है।अब ऐसा लगता है कि अध्यापकों के सब्र का बांध टूट रहा है।अब अध्यापक नए सिरे से फिर से आंदोलन की तैयारी में हैं।इसी क्रम में रविवार को ज़िला मुख्यालय पर अध्यापक रैली निकालेंगे।आज अध्यापक तहसील स्तर से ज़िला मुख्यालय पर जाने के लिए निजी वाहनों की व्यवस्था करते हुए दिखाई दिये।ऐसा अनुमान है कि इस रैली में बड़ी संख्या में अध्यापक ज़िला मुख्यालय पर जा कर रैली में सम्मिलित होंगे।

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

अध्यापक स्ट्राइक डे......



                    अध्यापक संघर्ष समिति सिरोंज की आज महत्वपूर्ण बैठक रखी गई।जिसमें बड़ी संख्या में अध्यापक उपस्थित हुए।अध्यापक नेताओं ने बैठक को सम्बोधित किया और प्रस्तावित 25 सितम्बर को अध्यापकों की होने वाली रैली की तैयारियों की समीक्षा की।



                   ऐसा समझा जा रहा है कि अध्यापकों की सम्भावित रैली पर शासन भी नज़र रखे हुए है।रैली की सुगबुगाहट को देखते हुए सरकार की और से भी सकारात्मक संकेत देखने को मिल रहे हैं।वेतन विसंगतियों को भी दूर करने की बात हो रही है।ऐसा लगता है कि सरकार अध्यापकों से किये वादे को जल्द ही निभा सकती है,पर अध्यापक सरकार के इन संकेतो को शंका की निगाह से देख रहे हैं।इस सम्बन्ध में जब अध्यापकों से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि,शासन उनकी प्रस्तावित रैली को रद्द कराना चाहती है।
अब असल बात जो भी हो हम आज की अध्यापक संघर्ष समिति की बैठक की बात कर रहे थे,जिसका सफल समापन हुआ।आगामी रैली को लेकर रणनीति पर सहमति बनी।रैली कितनी सफल होती है यह आम अध्यापकों की सहभागिता पर निर्भर करेगा....25 सितम्बतर नज़दीक है जल्द ही आपके हमारे सामने परिणाम होंगे।अभी यह लग रहा है कि,25 सितम्बर को strike sunday या adhyapak  strike day है शायद।आपको क्या लगता है लिखियेगा......

सकारात्मक संकेत....


                 अध्यापकों के प्रस्तावित आंदोलन को देख कर सरकार की और से सकारात्मक संकेत देखने को मिल रहे हैं।समाचार पत्रों में प्रतिदिन सरकार से बनी सहमति और अध्यापक मांगों पर सहमति से सम्बंधित खबरें प्रकाशित हो रही हैं।अब अध्यापक और अध्यापक नेता इन सब पर कितना विश्वास करते हैं,यह वही जाने।किन्तु अचानक से अध्यापकों को सरकार की और से संकेत मिलने लगे हैं कि,सरकार ये बताना चाह रही है कि वह अध्यापकों के हितों का हमेशा से ही ख्याल रखती आ रही है।और आगे भी रखेगी।सरकार संकेत दे रही है कि अध्यापक हड़ताल न करें।बल्कि स्कूलों में बच्चों को पढाएं।इधर अध्यापक अपनी रैली की तैयारियों में व्यस्त हैं।देखना ये है कि परिणाम क्या आते हैं

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

सरकार अचरज में....


                             अध्यापकों के आंदोलन की सुगबुगाहट सुन कर सरकार अचरज में है।सरकार का मानना यह है कि अध्यापकों संघठनों की सहमति से ही बनी सहमति में ये निर्णय हो चुका है कि अध्यापकों को छठवां वेतन मान पांच किश्तों में सितम्बर 2017 तक दिया जायेगा।साथ ही चित्र अनुसार समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार के अनुसार सरकार अध्यापक संघठनों की सहमति के अनुसार,उस दिशा में काम भी कर रही है।सरकार का ये तर्क शायद अध्यापक संघठनों को पसन्द न आये।क्यों कि इस में ये नही बताया गया है कि कोन कोन से संघठन के साथ बैठ कर ये सहमति बनी थी।अब स्तिथि जो भी हो अध्यापक आर पार की लड़ाई का मूड दिखा रहे हैं।सरकार की तरफ से ये तर्क रखा जा रहा है कि,आपके साथ बनी सहमति के अनुसार कार्य किया तो जा रहा है।इन सब के बीच आम अध्यापक पशो पेश में है कि किया क्या जाये? और जब इस प्रकार की सहमति बन गई थी तो उसकी जानकारी आम अध्यापक को आज तक क्यों नही थी? अध्यापकों का तो यहां तक कहना है कि,यदि सरकार का पक्ष सही है तो,ऐसी सहमति बनाने से पहले आम अध्यापक को विश्वास में क्यों नही लिया गया।क्या आम अध्यापक रैली आंदोलनों में भीड़ एकत्रित करने तक ही सीमित है।इधर अध्यापक नेताओं का मानना है कि उनकी प्रस्तावित रैली को असफल करने के लिए भ्रम की स्तिथि पैदा की जा रही है।अब वास्तविक स्तिथि जो भी हो आम अध्यापक तो इसी आस में बैठा है कि,आखिर कब शिक्षा विभाग में संविलियन होगा...........और कब मिलेगा छटवां वेतन मान।

तिरंगा रैली की तैय्यारी....


                   अध्यापक 25 सितम्बर को प्रस्तावित तिरंगा रैली की तैय्यारी में लगे हुए हैं।इस रैली की तैय्यारी के लिए विकासखण्ड स्तर पर बैठकें कर के अध्यापकों को एक सूत्र में बांधने और रैली को सफल बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।प्रदेश भर के अध्यापकों में प्रस्तावित रैली को लेकर उत्साह दिखाई दे रहा है। twitter पर अध्यापक इसे आर पार की लड़ाई बता रहे है।यहां अध्यापक बहनें भी इस में ज़ोर शोर से अपनी भागीदारी निभा रही हैं।एक अध्यापक बहन का twitter पर आया tweet देखिए...
"भैय्या अपनी छोटी बहन का शिक्षा विभाग में संविलियन करा दो" आपने सन्देश पड़ लिया होगा।इस प्रकार के अनेक सन्देश सोशल साइट पर भिखरे पड़े हैं।ग़ौरतलब बात यह है कि,अध्यापक सोशल साइट की अहमियत समझते हैं इसलिए सभी अध्यापक एवं अध्यापक नेता अपने इस प्रस्तावित आंदोलन को सड़क के साथ सोशल साइट पर भी ले आये हैं।अब देखना ये है कि 25 सितंबर को होने वाली अध्यापक रैली हो पाती है अथवा नही।और यदि रैली होती है तो वह अध्यापकों को उनका हक़ दिला पाती है या नही।ये सभी बातें समय के गर्त में छुपी हुई हैं।अध्यापक आशावादी रुख अपनाये हुए हैं उन्हें लगता है कि शासन उनकी बात ज़रूर सुनेगा।और सरकार भी जल्द ही अध्यापकों के हित में निर्णय लेगी।आपको क्या लगता है लिखिएगा।

संघर्ष समिति के बैनर तले अध्यापक आंदोलन...



             नये नाम और नए स्थान पर अध्यापकों की आज 25 सितम्बर की रैली की तैय्यारी हेतु बैठक सम्पन्न हुई।अध्यापक संघर्ष समिति के इस नए नाम के साथ प्रदेश के अध्यापक फिर से मैदान में उतरने की तैय्यारी कर रहे हैं।गोर तलब बात ये है कि बीते समय में अध्यापकों ने अपनी मांगों को लेकर खूब संघर्ष किया।शासन की और से उन्हें सकारात्मक  संकेत भी मिला।किन्तु निरन्तर समय गुज़रने के साथ ही,जब अध्यापकों की मांगें उन्हें पूरी होते नही दिखीं तो उनके तेवर बदलने लगे।विभिन्न संघठनों में बंटा अध्यापक संघठन इस बार पूरी तैय्यारी के साथ मैदान में उतरने के मूड मे है।सोशल साइट्स पर तो जेसे इस भाविष्य में होने वाले आंदोलन से सम्बंधित पोस्ट की भरमार अभी से दिखाई देने लगी है।whatsapp,facebook के बाद अध्यापक twitter पर भी सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।twitter के अध्यापकों का रुख तो बड़ा ही आक्रामक है।किन्तु blogger पर अध्यापक दिखाई नही देते।खैर जो भी हो अध्यापक अपनी एकलोती मांग के लिए अब संघर्ष,"संघर्ष समिती" के बैनर तले करेंगे।शासन अब अध्यापकों को कितना response देता है ये तो समय ही बताएगा।जहां तक सिरोंज के अध्यापकों के आंदोलन मे सम्मिलित और सक्रिय होने की बात है तो,वह निश्चित रूप से इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।क्योंकि उमेश सोनी जी के मार्गदर्शन वाले,चित्र में दिखाई दे रहे सभी चेहरे ऐसे हैं जिनके ऊपर अध्यापक विश्वास करते हैं और इस टीम ने कई सफल कार्यक्रम करके भी दिखाएँ हैं।


मंगलवार, 20 सितंबर 2016

अध्यापक आंदोलन के मूंड में.....


               
                                           मध्य प्रदेश में अध्यापक फिर से आंदोलन के मूण्ड में नज़र आ रहे हैं। 25 सितम्बर को तिरंगा रैली निकाली जाने की योजना भी है।क्या बात है कि शिक्षा के मन्दिर के ये पुजारी बार बार सड़कों पर आ जाते हैं।इनकी ऐसी कोन सी बेश कीमती मांगे हैं जिन्हें उभरते हुए मध्य प्रदेश,और बी मारु राज्य से,विकसित मध्य प्रदेश बनाने का दावा करने वाली सरकार पूरा नही कर पा रही है।पूर्व में भी अध्यापकों ने कई आंदोलन किये हैं,पर शासन के आश्वासन के बाद इन्हें कुछ न कुछ तो प्राप्त हुआ ही है।किन्तु बात समझ से परे है कि,इनकी मांगे मानी जाने की बात तो दूर है,इनकी बात को भी नही सुना जा रहा है।इस सम्बन्ध में अलग अलग लोगों के अपने अलग अलग विचार और तर्क हैं।कुछ लोग कहते हैं शासन को स्कूलों में अध्यापक चाहिए।नेता नही चाहिए।कुछ लोग ये कहते हैं कि,शासन को भली भांति पता है कि,कुछ अध्यापक केवल नेता गिरी ही करते हैं,वह स्कूल ही नही जाते।कुछबुद्धिजीवियों की ये सोच है कि शासन जल्द ही अध्यापकों की मांगों पर विचार कर के अध्यापकों के हित में ही निर्णय लेगा,अध्यापक सब्र रखें।बात जो भी हो साथ ही जिस की जो मनशा हो आम लोग कहते हैं कि अध्यापकों के बार बार हड़ताल पर जाने से बच्चों की पढाई प्रभावित होती है।अध्यापकों को यूँ बार बार सड़क पर उतरना शोभा नही देता है।इस क्रिया की प्रतिकिर्या में अध्यापक कहते हैं कि शासन को भी शोभा नही देता "वादा कर के भूल जाना" खैर मुद्दे की बात ये है कि शासन विसंगति रहित वेतन पत्रक शीघ्र जारी करे,और अध्यापकों की जायज़ मांगों पर जल्दी से विचार करके उचित निर्णय ले।जिससे अध्यापकों को बार बार सड़क पर नही उतरना पड़े। ई-अटेंडेंस लगाने के लिए जिन अध्यापकों के पास एनड्राईड मोबाइल नही है,वही face book,whatsapp,twitter आदि सोशल मीडिया पर अध्यापकों के हितो की लड़ाई लड़ने का दावा कर रहे है।बात निकलती है तो निकलती चली जाती है और मुद्दे की बात रह जाती है।बात हो रही थी अध्यापकों की तिरंगा यात्रा की।ये तिरंगा यात्रा कितनी उचित और अनुचित है ये अध्यापक और शासन समझें।महत्वपूर्ण ये है कि बच्चों की शेक्षडिक गति विधियां प्रभावित नही होना चाहिए।समाज, जनता की नज़र शासन और शिक्षक दोनों पर है।जनता का मानना ये है कि शिक्षक और शासन की इस संकेतिक लड़ाई में बच्चों का भाविष्य खराब हो रहा है उनके अनुसार अध्यापकों को धरने आंदोलन अवकाश के दिनों में करना चाहिए।अब कोन कितना सही है इसका आकलन आप पर छोड़ता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप इस सम्बन्ध क्या सोचते हैं,वोह यहां पर पर भी शेयर करेंगे।

रविवार, 18 सितंबर 2016

suvachhta: अध्यापकों के संघठन एक मंच पर....?

अध्यापकों के संघठन एक मंच पर....?


                      शासकीय स्कूलों के अध्यापक और अध्यापक नेताओं की आज बैठक किये जाने की खबर है।विभिन्न संघों में बटे हुए अध्यापक कह रहे हैं कि सभी संघठन मिलकर काम करेंगे।इस बात में कितनी दम है आने वाले कुछ दिनों में ही पता चल पायेगा।सब जानते हैं अध्यापकों के अलग अलग संघठनों ने अलग अलग अपने तरीके से विभिन्न आंदोलन किये हैं।किन्तु कई संघों संघठनों बटा अध्यापक आज तक अपनी मूल मांग नही मनवा पाया है।अब whatsapp पर ये खबरें चल रही हैं कि,अध्यापकों के सभी संघठन एक मंच पर आ गए हैं और सभी एक होकर अपनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं।आम अध्यापक के ये बात कितनी समझ आती है,ये वोह ही जाने।अध्यापकों के बारे में ये कहा जाता है कि,इनके अनेक संघठन और अनेक नेता हैं।इनकी अनेकता में कभी एकता देखने को मिलती नही है।प्रशंसा उस आम अध्यापक की ज़रूर की जानी चाहिए।जो हर आंदोलन में,हर संघठन के साथ खड़ा दिखाई दिया।नुकसान भी उसी ने सबसे ज़्यादा उठाया है।आज कल कुछ अध्यापक साथी twitter पर अपनी बात बड़े ज़ोर शोर से रख रहे हैं।ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि,वह कुछ नही करते।बात हो रही थी अध्यापकों के एक होकर शासन से अपनी मांगे मनवाने की.........अब देखना ये है कि ये एक होना अध्यापकों के कितना काम आता है।वेसे भी अध्यापक निराश अवश्य है.....पर हारा नही है.....जोश भी वही पहले जेसा है....नही है तो केवल सही नेतृत्व.....जो उन्हें उनका अधिकार दिला सके।