शासकीय स्कूलों के अध्यापक और अध्यापक नेताओं की आज बैठक किये जाने की खबर है।विभिन्न संघों में बटे हुए अध्यापक कह रहे हैं कि सभी संघठन मिलकर काम करेंगे।इस बात में कितनी दम है आने वाले कुछ दिनों में ही पता चल पायेगा।सब जानते हैं अध्यापकों के अलग अलग संघठनों ने अलग अलग अपने तरीके से विभिन्न आंदोलन किये हैं।किन्तु कई संघों संघठनों बटा अध्यापक आज तक अपनी मूल मांग नही मनवा पाया है।अब whatsapp पर ये खबरें चल रही हैं कि,अध्यापकों के सभी संघठन एक मंच पर आ गए हैं और सभी एक होकर अपनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं।आम अध्यापक के ये बात कितनी समझ आती है,ये वोह ही जाने।अध्यापकों के बारे में ये कहा जाता है कि,इनके अनेक संघठन और अनेक नेता हैं।इनकी अनेकता में कभी एकता देखने को मिलती नही है।प्रशंसा उस आम अध्यापक की ज़रूर की जानी चाहिए।जो हर आंदोलन में,हर संघठन के साथ खड़ा दिखाई दिया।नुकसान भी उसी ने सबसे ज़्यादा उठाया है।आज कल कुछ अध्यापक साथी twitter पर अपनी बात बड़े ज़ोर शोर से रख रहे हैं।ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि,वह कुछ नही करते।बात हो रही थी अध्यापकों के एक होकर शासन से अपनी मांगे मनवाने की.........अब देखना ये है कि ये एक होना अध्यापकों के कितना काम आता है।वेसे भी अध्यापक निराश अवश्य है.....पर हारा नही है.....जोश भी वही पहले जेसा है....नही है तो केवल सही नेतृत्व.....जो उन्हें उनका अधिकार दिला सके।
suvachhta.com blog me,samajik,mansik suvachhta ki bat hoti he.educational,awareness.social network se releted bat bhi hoti he.
रविवार, 18 सितंबर 2016
अध्यापकों के संघठन एक मंच पर....?
शासकीय स्कूलों के अध्यापक और अध्यापक नेताओं की आज बैठक किये जाने की खबर है।विभिन्न संघों में बटे हुए अध्यापक कह रहे हैं कि सभी संघठन मिलकर काम करेंगे।इस बात में कितनी दम है आने वाले कुछ दिनों में ही पता चल पायेगा।सब जानते हैं अध्यापकों के अलग अलग संघठनों ने अलग अलग अपने तरीके से विभिन्न आंदोलन किये हैं।किन्तु कई संघों संघठनों बटा अध्यापक आज तक अपनी मूल मांग नही मनवा पाया है।अब whatsapp पर ये खबरें चल रही हैं कि,अध्यापकों के सभी संघठन एक मंच पर आ गए हैं और सभी एक होकर अपनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं।आम अध्यापक के ये बात कितनी समझ आती है,ये वोह ही जाने।अध्यापकों के बारे में ये कहा जाता है कि,इनके अनेक संघठन और अनेक नेता हैं।इनकी अनेकता में कभी एकता देखने को मिलती नही है।प्रशंसा उस आम अध्यापक की ज़रूर की जानी चाहिए।जो हर आंदोलन में,हर संघठन के साथ खड़ा दिखाई दिया।नुकसान भी उसी ने सबसे ज़्यादा उठाया है।आज कल कुछ अध्यापक साथी twitter पर अपनी बात बड़े ज़ोर शोर से रख रहे हैं।ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि,वह कुछ नही करते।बात हो रही थी अध्यापकों के एक होकर शासन से अपनी मांगे मनवाने की.........अब देखना ये है कि ये एक होना अध्यापकों के कितना काम आता है।वेसे भी अध्यापक निराश अवश्य है.....पर हारा नही है.....जोश भी वही पहले जेसा है....नही है तो केवल सही नेतृत्व.....जो उन्हें उनका अधिकार दिला सके।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
Good
एक टिप्पणी भेजें