शुभ रात्रि और शब्बा खेर जेसे शब्द हमने अनेक बार सुने हैं।यदा कदा आवश्यकता पड़ने पर हम भी इनका प्रयोग करते है।आज कल Good Night शब्द का ज़्यादा प्रचलन है।व्यक्ति के जीवन में दिन रात का खेल चलता रहता है।पहले कहा जाता था कि,दिन का समय काम काज के लिए है।और रात का समय आराम करने के लिए होता है।बात भी सही है आदमी दिन भर अपना काम करके शाम को घर आता है और थका हुआ शरीर आराम की तलाश करता है।पर आज के इस आधुनिक दौर ने इन पुरानी बातों में भी परिवर्तन ला दिया है।अब इस तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में व्यक्ति ओवर टाइम भी काम करता है।कुछ लोग का काम ही ऐसा होता है कि,उन्हें ,नाइट शिफ्ट"में काम करना होता है।और वह सम्भवता दिन में आराम करते होंगे।बात जो भी हो जब व्यक्ति सोने जाता है तो उसे नही पता होता कि वह कल का दिन भी देख पायेगा या नही।क्यों के किस व्यक्ति को कितना जीना है, ये उसे नही पता होता है।कब किस की साँसे पूरी हो जाएं ये कोई भी नही जानता है।इस भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी में व्यक्ति दौड़ लगाता रहता है।पता ही नही चलता कि,ज़िन्दगी का ये सफर कब समाप्त होने वाला है।आप सभी ने किसी अपने को इस ज़िन्दगी के सफर को पूर्ण करके जाते हुए कई बार देखा होगा।ये भी हम सभी जानते हैं कि,जब कोई अपना हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाता है तो कितनी तकलीफ होती है।ये सोचने भर से हम मायूस हो जाते हैं कि,आज अपना वह व्यक्ति हमारे बीच नही है।बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने अपने माता पिता को अपने से दूर जाता देखा होगा,वही लोग समझते भी हैं कि किसी अपने के यूँ ही चले जाने से कितना दुख होता है।पर ज़िन्दगी की सच्चाई भी ये ही है।जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसको ये दुनिया छोड़ कर भी एक दिन जाना है।किस को कब जाना है ये कोई नही जानता।मैं यहां कोई नई बात नही लिख रहा हूँ सब इन बातों से परिचित हैं पर जब चित्र में सासों का ज़िक्र देखा तो मन हुआ कि कुछ लिखा जाये।आप इससे बेहतर इस सम्बन्ध में विचार रखते होंगे।मुझे लगता है कि आप उचित समझें तो अपने विचार शैयर अवश्य करें
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रविवार, 18 सितंबर 2016
शनिवार, 17 सितंबर 2016
डेंगू से दो दो हाथ ....
डेंगू का डंक शीर्षक से इस विषय पर लिखा जा चुका है।उसके पश्चात भी देखने में आया है कि,ये बीमारी कम होने के बजाय लगातार बड़ रही है।लोग इस बीमारी से त्रस्त हो चुके हैं लक्षण भी आम खांसी,बुखार,जुखाम से मिलते जुलते हैं।इसलिए प्रारम्भ में इस रोग को पहचानना मुश्किल होता है।बात तब पता चल पाती है तब जान पर बन आती है।कुछ लोगों की डेंगू से मौत होने की खबर है।सम्बंधित विभाग क्या कर रहा है।किसी को पता नही।डेंगू एक भयानक बीमारी है जिस का हल ये है कि,सुरक्षा ही उपाय है।इसलिए ज़रूरी है चित्र अनुसार डेंगू से बचाव के उपाय किये जाने की ज़रूरत है।इस रोग से सतर्क रहैं।सुरक्षित रहैं।डेंगू से दो दो हाथ करने की ज़रूरत है।और इस से सुरक्षित रहने की भी ज़रूरत है।
सत्यापन समाप्त .....
सरकारी स्कूलों बच्चों के ज्ञान का अवलोकन करने का आज अंतिम दिन था।आज विभन्न सरकारी स्कूलों में जनशिक्षकों ने सत्यापन किया।ऐसी उम्मीद की जा रही है कि बच्चों की शेक्षणिक गुणवत्ता जांचने के पश्चात इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगें।
बच्चों के सत्यापन से अभिभावक भी प्रसन्न दिखाई दिए।बच्चों के पालकों की सोच ये है कि,बच्चों की दक्षता और ज्ञान के स्तर की जांच के बाद शायद कोई ऐसी नीति बने के,जो बच्चा जिस क्षेत्र में कमज़ोर है।उसके आंकलन के पश्चात उसकी सम्बंधित क्षेत्र में दक्षताओं का विकास किया जाये
जिससे सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अन्य निजी स्कूलों के बच्चों की तरह गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें।बात जो भी हो बेस लाइन सर्वे भी हो गया,सत्यापन भी हो गया।अब इसके आगे क्या होना है,उसका सभी को इंतेज़ार है।आप इस बारे में क्या सोचते हैं,लिखियेगा
सी एम हेल्प लाईन....
जनपद शिक्षा केंद्र में आज जनशिक्षकों की अतिआवश्यक बैठक रखी गई।जिसमें विकास खण्ड स्त्रोत समन्वयक,बी ए सी एवं जनशिक्षक उपस्थित हुए।जिसमें सी एम हेल्प लाइन की शिकायतों के निराकरण करने पर चर्चा की गई।
बैठक में जनशिक्षक कैलाश कुमार कुशवाह,महेश शर्मा,महेश साहू,नवल सिंह दोहरे,सन्दीप श्रीवास्तव,धुर्व शर्मा,ओमकार सिंह रघुवंशी,ब्रजेश पंथी,कैलाश बाबू कुशवाह,नासिर खान,चिरोंजी लाल पाल,आदि उपस्थित हुए।बी आर सी निखलेश कुमार श्रीवस्तव ने समस्त जनशिक्षकों को निश्चित समय सीमा में सी एम हेल्प लाइन की शिकायतों का निराकरण करने के निर्देश दिए।बैठक में बी ऐसी देवीलाल दिनकर ने भी जनशिक्षकों से आवश्यक जानकारियां एकत्रित कीं।
एक अच्छा रिश्ता ज़िन्दगी को ......
रिश्तों का इंसानी ज़िन्दगी में बड़ा महत्व है कुछ रिश्ते हम बनाते हैं और कुछ रिश्ते हमें विरासत में मिलते हैं।कुछ रिश्ते खून के रिश्ते होते हैं।खून के रिश्ते हमारी ज़िंदगी में बहुत महत्व पूर्ण होते हैं।किन्तु कुछ लोगों की सोच इसके विपरीत होती है।उनका मानना है कि खून के रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हैं हम नही बनाते बल्कि वोह हमें खुद ही मिलते हैं।किन्तु जो रिश्ते हम बनाते हैं।उनकी अहमियत हमारी ज़िन्दगी में ज़्यादा होना चाहिए,क्यों कि ऐसे रिश्ते हम अपनी समझ बूझ से बनाते हैं।इस तरह के रिश्ते मित्रों से बनते हैं।मित्रों का भी हमारी ज़िन्दगी में उतना ही महत्व होना चाहिए।जितना कि,अन्य सदस्यों का।
रिश्ते जो भी हों जेसे भी हों।निभाना ईमानदारी से चाहिए।जिस प्रकार आपने सुना होगा एक आइडिया ज़िन्दगी को बदल सकता है।उसी प्रकार एक अच्छा रिश्ता भी ज़िन्दगी खुशगवार बना सकता है।बात सिर्फ रिश्तों की अहमियत को समझने की है।और निभाने की है
गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा ...
शासकीय स्कूलों में स्टूडेंट्स की दक्षताओं के सत्यापन का आज अंतिम दिन है।चित्र में जनशिक्षक ओमकार सिंह बच्चों की दक्षताओं का आकलन करते हुए दिखाई दे रहे है।पिछले कुछ दिनों से शासकीय स्कूलों में अध्ययनरत् प्रारम्भिक स्तर के बच्चों का शेक्षडिक स्तर जांचा जा रहा है।इसके पीछे शासन की मनशा शायद ये होगी कि बच्चों के ज्ञान के स्तर को जांच कर के उनके ज्ञान के अनुसार उन्हें गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जाये।मनशा कुछ भी हो प्रयास अच्छा है।अब देखना ये है कि इसके आगे भी कुछ हो पाता है या नही।आप जानते ही हैं कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की कम उपस्तिथी सहित बहुत से ऐसे कारण है जिससे सरकारी स्कूलों के बच्चे ठीक से पड़ नही पाते हैं।शिक्षकों को पहले ही अन्य कार्य और विभिन्न जानकारियां बनाने में लगा रखा है।जिससे पढ़ना पदाना हो ही नही पाता है।खेर अब इस सत्यापन के परिणामों के आधार पर शायद कोई योजना बने जिससे बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिल सके।
गुज़रा हुआ वक़्त लौट कर नही आता
व्यक्ति की ज़िन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दौर बचपन होता है।हर कोई चाहता है कि मेरा बचपन फिर लोट आये लेकिन ऐसा होता नही है।वास्तव में ज़िन्दगी का ये पड़ाव जिसे हम बचपन कहते हैं।हर किसी को बैचेन किये रहता है।सभी की ज़ुबान पर अपने बचपन से जुड़ी कुछ खट्टी मीठी यादें होती हैं।जो वह अपनों से शेयर करना चाहता है।ये ही वजह है कि सभी को बच्चे पसन्द होते हैं।बच्चे भी कितने मासूम और भोले होते हैं।कठोर से कठोर व्यक्ति भी बच्चों के सामने नरम हो जाता है।जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपने बच्चों को अपने बचपन के किस्से कहानियाँ सुनाते हैं।वास्तव में देखा जाये तो बचपन की बातें और यादें हर किसी को याद रहती है।और व्यक्ति सोचता है काश एक बार फिर से बचपन लौट आये।पर ऐसा होता नही है।जो बीत गया सो बीत गया ।बात बचपन की हो रही है तो अंत में ये भी बताता चलूँ कि,जो पल हमें ज़िन्दगी में मिले हैं उन्हें खुशी से जी लेना चाहिए क्योंकि वक़्त कभी लोट कर नही आता है।जेसे बचपन लोट कर नही आता वेसे ही ज़िन्दगी का हर पड़ाव महत्वपूर्ण है।जो गुज़र जायेगा वोह कभी लोटेगा नही।किसी बड़े लेखक ने लिखा था "गुज़रा हुआ वक़्त लोट कर नही आता" जिसने भी लिखा था सही लिखा था।आप क्या सोचते हैं? लिखियेगा
शुक्रवार, 16 सितंबर 2016
आंसुओं की भी अजब कहानी है...
आसुओं की भी अजब कहानी है।और अपनी दुनिया और अपनी भाषा है।कभी कभी किस्मत वाले लोगों को खुशी के आंसुओं के भी दीदार हो जाते हैं।आंसुओं की दुनिया में ये अपवाद स्वरूप होते हैं।वास्तव में आंसू के बारे में ये कहा जाता है कि,ज़्यादातर आंसू किसी अपने की दी हुई तकलीफ की वजह से ही निकलते हैं।ऊपर चित्र में जिस आंसू का ज़िक्र है वह वास्तव में बहुत तबाही मचाता है।ये किसी अपने का भी दिया हुआ आंसू भी हो सकता है।

कुछ लोगों का मानना है कि,आंसू मुस्कुराहट से ज़्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि मुस्कराहट सभी के लिए होती है।और हमारी आँख में आंसू किसी खास के लिए ही होता है।
खेर आंसू कभी बे वजह नही आते।हर किसी की ज़िन्दगी में"कभी खुशी कभी गम" जैसी स्तिथी रहती है।हर कोई आंसुओं से वाकिफ है।सभी उसका महत्व समझते हैं।लेकिन आंसू जब भी आते हैं इंसान को बहुत तकलीफ देते हैं।आंसुओं के बारे में शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं में बहुत कुछ लिखा है।कई फिल्मी गाने लफ्ज़ आंसू के सही प्रयोग से हिट हो चुके हैं।वास्तव में आंसू देख कर हर कोई भावुक हो जाता है।आज भी अच्छे व्यक्ति की पहचान है कि,वह किसी की आंखों में आंसू लाने का कारण नही बनता।बल्कि किसी के भी आंसू पोछने की कोशिश करता रहता है।समाज को भी ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है।आपको अगर ऐसे लोग मिले हों तो लिखियेगा ज़रूर
जीवन जीने की कला ....
ज़िन्दगी में हर किसी को लगभग एक जैसी ही उम्र जीने को मिलती है शारीरिक अवस्था भी समान ही होती है।फिर भी कुछ लोग ज़्यादा जीते हैं और कुछ लोग कहते हैं की, ये सब नसीब की बातें हैं।कुछ लोग समझदार होते हैं अपने जीवन को एक नियम में ढाल कर जीवन जीते हैं।उनकी जीवन शैली बड़ी अनुशासित होती है।जानकारों का मानना है कि,ऐसे लोग ज़्यादा जीते हैं।फिर भी कुछ लोग चित्र में अंकित शब्दों के अनुसार जीवन को जीने की बात करते हैं।एसे लोगों का मानना है कि,चित्र अनुसार जीने का अपना ही मज़ा है।खैर बात जो भी हो जीवन में ममुस्कुराना भी एक कला है।हर कोई इस कला का ज्ञाता नही होता।जो मुस्कुराना जानते हैं,उनहैं जीवन जीने की कला आती है।
ज़िन्दगी का ये दौर ....
ज़िन्दगी का ये दौर भी एक सच्चाई है।जिस को नकारा नही जा सकता है।बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो इस उम्र में आ ही नही पाते हैं।कुछ लोगों का उम्र के इस पड़ाव पर आते आते अपने जीवन साथी का साथ छूट जाता है।कुछ लोग खुशनसीब होते है।वह उम्र के इस दौर में भी अपने जीवन साथी के साथ प्रेम से रहते हैं।पर दिक़्क़त उन लोगों की हो जाती है जो उम्र के इस तीसरे चोथे दोर में,रोज़मर्रा की दिकक्तों का भी सामना अकेले ही करते हैं।शासन इन्हें सम्मान से "सीनियर सिटीजन"कहता है।पर इन सीनियर सिटीजन की ज़िन्दगी किस हाल में गुज़र रही है,ये देखने वाला कोई भी नज़र नही आता है।कभी कभी कुछ लोग इस उम्र के आपको सड़कों पर भीख मांगते भी दिखाई दिए होंगे।चिंतन का विषय है।आप भी सोचियेगा ज़रूर।क्या वास्तव में ये उम्र भीख मांग कर गुज़ारा करने की होती है।या इस उम्र में इनको कुछ थोड़ी बहुत सहूलियत भी मिलना चाहिए.......?
गुरुवार, 15 सितंबर 2016
शिक्षक डायरी ....
शिक्षा की गुणवत्ता की बात हम करते आ रहे हैं।पर शिक्षा में गुणवत्ता आई भी कि,नही ये जांचने की ज़रूरत हमें कभी महसूस नही हुई।शिक्षकों को अपने दैनिक पाठ्यक्रम की एक डायरी भरना होती है।अब शासन का नया फरमान आया है कि,ये चैक किया जायगा कि शिक्षक डायरी भर रहे हैं या नही ?
चित्र में जनशिक्षक बच्चों की दक्षताओं का आकलन करते हुए दिखाई दे रहे हैं।ये ठीक भी था कि बच्चों के ज्ञान का स्तर जांचलो और फिर उसी अनुसार उनका शिक्षण कार्य कराया जाय।पर अब शिक्षकों को शिक्षक डायरी में लिखना भी होगा कि,उन्होंने क्या पढ़ाया और क्या नही पड़ाया।शिक्षक की मंशा पर भी एक सवाल उठा रहा है ये आदेश। शासन को ऐसा लगता है कि,शिक्षक डायरी भरने से शिक्षा में सुधार हो जायगा।पर ऐसा लगता नही है।।शिक्षा में तभी सुधार हो पायेगा जब शिक्षकों पर भरोसा किया जाने लगेगा,उसे सम्मानजनक वेतन दिया जाने लगेगा।शासन को भी समझना चाहिए कि,शिक्षकों की भी अपनी समस्याएं हैं जिनको हल करने की ज़िम्मेदारी भी शासन की ही है।शिक्षक डायरी तो क्या शिक्षक सभी कार्य बहुत अच्छे तरीके से कर सकते हैं।
शिक्षकों से शिक्षा की उम्मीद
शिक्षा विभाग अपने मूल काम से दूर जाता दिखाई दे रहा है।शिक्षकों से शिक्षा की उम्मीद की जा रही है।अधिकारी स्कूलों का सतत निरीक्षण कर रहै हैं।स्कूलों को निर्देश दे रहे हैं कि,वह व्यवस्था में सुधार लाएं।बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दें।उनकी दक्षताओं और कोशलों में विकास कराएं।पर बात बनती दिख नही रही है।प्राथमिक शिक्षा की शासकीय स्कूलों में स्तिथि ज़्यादा ठीक नही है।इसके लिए सारा दोश शिक्षकों पर भी नही मड़ा जा सकता है।हर स्कूल की अपनी परिस्तिथि और समस्या है।पहले शासकीय स्कूलों की समस्याओं और ज़रूरतों की तरफ ध्यान देना होगा।शिक्षकों की समस्याओं का निदान करना होगा।फिर जब शिक्षक तनाव मुक्त रहेगा तो,परिणाम भी अच्छे देगा।बात को समझने की ज़रूरत है।ये सरकारी स्कूलों की शिक्षा में एक दो दिन में सुधार होने वाला नही है इसके किये दूरगामी नीति बनाने की ज़रूरत है।चित्र में विकासखण्ड स्त्रोत समन्वयक और उनकी टीम एक सरकारी स्कूल का निरीक्षण करते हुए दिखाई दे रहे हैं।ऐसे सतत निरीक्षणों की भी आवश्यकता है।और निरक्षण में दिए गए निर्देशों का पालन हुआ कि नही ये भी देखने की ज़रूरत है
मरीज़ परेशान...
सरकारी अस्पतालों की बदहाली की खबरें आये दिन अखबारों में पड़ने को मिल जाती हैं।मरीज़ परेशान प्रशासन हैरान! क्या करें।मरीज़ को समय पर उपचार नही मिल रहा है।अस्पताल प्रबंधन के भी अपने तर्क हैं।उनका कहना है स्टाफ पर्याप्त नही है,फिर भी हम समय से अधिक ड्यूटी कर रहे हैं।शिकायतें अपनी जगह वैसी के वैसी हैं।समझने की ज़रूरत नही है कि,कहीं न कहीं तो दिक़्क़त है।खेर छोड़िये ये बात तो सभी जानते हैं कि,समाज का वोह तबक़ा सरकारी अस्पतालों की शरण लेता है जो,निजी चिकित्सालयों में अपना इलाज नही करा पाता है शासन की सभी योजनाएं भी इसी तबके के लिए हैं फिर उसी को उनका लाभ क्यों नही मिल पाता है।बात चिंताजनक है।ज़रूरी क़दम उठाने की ज़रूरत है।जिससे सरकारी अस्पतालों से जनता त्रस्त ना रहै।बल्कि जनता का विश्वास सरकारी अस्पतालों पर बना रहे।
बुधवार, 14 सितंबर 2016
हिन्दी प्रेम
हिन्दी भाषा दुनिया की सब से सरल और सुगम भाषा है।हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में ये वादे भी भी हर साल किये जाते हैं कि,अब सभी काम काज हिन्दी में ही किये जायेगें।बात फिर आई गई हो जाती है।हिन्दी पखवाड़ा मनाये जाने का भी चलन है।पर वास्तव में ऐसा हो नही पाता जैसा हिन्दी प्रेम दिखाया जाता है।आज के वर्तमान युग में भी हिन्दी भाषा की महत्ता किसी भी मायने में कम नही है ज़रूरत सिर्फ इस बात की है कि हमें सभी काम काज और बोल चाल में हिन्दी भाषा का प्रयोग गर्व के साथ करना चाहिए ।शासन स्तर पर भी सभी आधिकारिक पत्र और काम हिन्दी भाषा में किये जाने की ज़रूरत है।जाने क्यों ये मानसिकता घर किये हुए बेठी है कि,हिन्दी के प्रयोग से हम पिछड़े कहलायेंगे।हिन्दी के महत्व को समझते हुए।गर्व से हिन्दी भाषा का प्रयोग करने की आदत डालें।आज समय की ज़रूरत है हिन्दी भाषा का प्रयोग।
शिक्षा विभाग के आंकड़े
मध्य प्रदेश के सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ।शासकीय स्कूलों में आंतरिक और बाहा मूल्यांकन से प्रारम्भिक शिक्षा के ज्ञान का स्तर जांचा जा चुका है।अब टीमें बना कर ये जांचने की तैयारी चल रही है कि,जो पहले जांचा गया था,वह सही है क्या?जनशिक्षकों को भी इस काम में लगाया गया है।सिरोंज के कुछ जनशिक्षकों का मानना है कि,प्रसिद्ध स्थल रायसेन ज़िले के साँची विकास खण्ड में ये कार्य व्यवस्थित तरीके से किया जा रहा है।इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं।बात जो भी हो।प्राथमिक शिक्षा में प्रयोग किये जाने की बात मैंने अपने पिछले लेख मे की थी।अभी भी केवल आंकड़े एकत्रित करने की बात हो रही है।किसी प्रयोग के लिए ये जानना आवश्यक होता है कि,कितना काम हो गया और कितना बाक़ी है।और अब हमें कहाँ से शुरू करना है।पर शिक्षा विभाग में कोई सकारात्मक शुरआत नही हो पा रही है।केवल आंकड़े एकत्रित होते रहते हैं।इन आंकड़े बाज़ी से शिक्षक भी परेशान हैं।वह पढाएं या आंकड़े एकत्रित करें,ये बात उन्हें भी शायद समझ नही आती होगी।क्योंकि शिक्षकों से लिखा पड़ी इतनी करायी जाती है कि उन्हें बच्चों को पड़ाने का समय मिल पाता होगा या नही,ये वोह ही बता पाएंगे।आप को क्या लगता है ये व्यवस्था ठीक है क्या? लिखियेगा।
क्रिकेट में मन मुटाव
क्रिकेट में खिलाड़ियों का आपसी मन मुटाव नई बात नही है।हाल ही में न्यूज़ीलैंड से टेस्ट मैच के लिए क्रिकेटर गौतम घम्भीर का टीम में चयन नही होना भी लोग विराट कोहली और गौतम घम्बीर के मन मुटाव से जोड़ कर देख रहे हैं।लोगो का मानना ये है कि,कोहली नही चाहते थे कि ओपनर बल्लेबाज़ शिखर धवन की जगह भारतीय टीम में गौतम घम्भीर को लिया जाये।हक़ीक़त जो भी हो,इस बीच टीम में चयन नही होने से घम्बीर ने निराशा व्यक्त की है और कहा है " मैं निराश हूँ पर हारा नही हूँ" घम्भीर आशावादी लगते हैं।वेसे देखा जाये तो घरेलू क्रिकेट में गौतम का प्रदर्शन अच्छा रहा है।इस आधार पर उन्हें टीम में चयनित होने की सम्भावना लग रही होगी किन्तु ऐसा नही हुआ।
मंगलवार, 13 सितंबर 2016
चरम पर मलेरिया...
रजस्थान के धौलपुर के सेपउ उपखण्ड में मलेरीया का ज़ोर चरम पर है।सरकारी अस्पताल में मरीजों के लिए जगह की कमी बनी हुईं है।लोगों को खुले में पेड़ का सहारा लेकर बॉटल चडाई जा रही है।बारिश के मौसम में मलेरिया,चिकिंगुनिया,वायरल फीवर आदि का ज़ोर ज़्यादा रहता है।मध्य प्रदेश में भी इन मोसमी बीमारियों का ज़ोर चरम पर है।देश के अनेक हिस्सों में इस समय बीमारियों की खबरें समचार पत्रों की सुर्खियां बन रहीं हैं।दिल्ली में भी इस तरह की खबरें हैं।दिल्ली में मुद्दा कुछ भी हो उस पर राजनीति ज़रूर होती है।राज्य सरकारों को चाहिए कि,मलेरिया और मौसमी बीमारियों के इलाज के पुख्ता इंतेज़ाम करें,जिससे आम जनता को इन बीमारियों से राहत मिल सके।इस समय मलेरिया का ज़ोर चरम पर है।इसकी रोक थाम के लिए उचित क़दम उठाना ज़रूरी है।
कावेरी जल विवाद
कावेरी जल विवाद नया नही है।कर्नाटक और तमिलनाडू राज्यों में हमेशा इसको लेकर विवाद रहता है।वर्तमान में कर्नाटक के लोगों का मान्ना है कि उनके साथ न्याय नही हुआ है।इन दोनों राज्यों के जल विवाद ने विवाद की स्तिथि पैदा की है।दोनों राज्यों को बैठ कर शांति से बात कर के इस समस्या का हल निकालना चाहिए।आगज़नी और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पुहचाने से कोई हल निकलने वाला नही है।आपसी बात चीत से बड़ी बड़ी समसयाएं सुलझाई जा सकती हैं।इस बात को दोनों राज्यों को समझना होगा।
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